गजल

काशिकान्त झा जनकपूरधाम (कवी एवं साहितयकार )

आप दिलमे रहे ना ये हो नही सकता
आप दिलवर रहे ना ये हो नही सकता

हमने तो मुहब्बत निभाइ है दिलसे
दिल रुठे किसीका ये हो नही सकता

गममे गुनगुनाना मुझे खुब आता है
खुशीमे हम रोए ये हो नही सकता

खुशी छलक जाती है और बात है
गममे निकलेगे आँसु ये हो नही सकता

कभी हमने किया था सौके दीदार
नजर ना मिलाए ये हो नही सकता

इश्क करना ही तुमसे बडी बात है
इश्क हमना निभाए ये हो नही सकता

रुबरु होना तुमसे मुकद्दर नही
देखकर छुपजाना ये हो नही सकता

चान्द उतरे जमी पर उजाला लिए
उसमे हम ना नहाए ये हो नही सकता

सुना है समन्दर बहोत गहरा है काशी
है इश्क से भी गहरा ये हो नही सकता

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